लेखक: डॉ पुनीत अग्रवाल
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PhotoSource:http://tehelkahindi.com/ |
वर्ष 2019 बड़ा ही निराशाजनक जाता हुआ प्रतीत हुआ है क्योकि इसी साल माननीय उच्चतम न्यायालय ने वैवाहिक बलात्कार से जुड़ी एक जन हित याचिका पर सुनवाई से इंकार करते हुये एक सम्पूर्ण पत्नी परक व्यवस्था को जन्म लेने से पूर्व ही उसका पटाक्षेप कर दिया। कुछ लोग बड़े खुश थे इस निर्णय से। विचित्र बात है, क्यो खुश थे? क्या “बलात्” शब्द इनलोगों को बहुत प्रिय है? या ये अति कामी हैं? या कह लो इनको इतनी समझ ही नहीं कि किसने क्या मांगा, और किसने क्या देने से मना कर दिया। लोग तो बस "अपने पास बीवी है" इसी विचार से खुश हैं। लोगों को ये समझ ही नहीं आया कि ये एक अच्छा मौका था सतयुग लाने का, समाज को उन्नत बनाने का, देश को वापस सोने की चिड़िया, भारत को विश्वगुरु बनाने का और जनसंख्या विस्फोट पर काबू पाने का, सब गुड गोबर हो गया। आगे बात से पहले ये बता दें कि भारत मे अभी वैवाहिक बलात्कार को परिभाषित नहीं किया गया है, और इसके लिए कोई कानून नहीं है। महिला अधिकार कार्यकर्ता इसे अपराध की श्रेणी मे लाने के लिए कोर्ट समेत कई मंचों पर लड़ाई लड़ रही हैं ।
वैवाहिक बलात्कार कानून (Marital Rape Law) से सतयुग की वापसी और जनसंख्या नियंत्रण का विचार ही अपने आप मे विलक्षण और अति उत्तम है। भले ही केंद्र सरकार इसके इसके पक्ष मे न हो (पर क्यो नहीं है वो तो एक अति संवेदनशील सरकार है इन मामलो मे?) लेकिन मुझे इस बात से आश्चर्य है की आखिर ऐसा क्यो नहीं हुआ, क्या है जो अटक रहा, खटक रहा है? या फिर सरकार का पिच्छला सब कुछ दिखावा था और यही असली चेहरा है? मुझे लगता कि अगर सतयुग कि वापसी हो गयी तो सरकार को भगवाकरण का ताना झेलना पड़ेगा, उसी से परहेज है ये सब। पर खारिज हो गया। खैर राजनीति नहीं लॉं की बात की जाये फिलहाल। ये मुद्दा कितना महीन और नवीन है, फिर भी महत्वहीन है। भारत की सूप्रीम कोर्ट और कई उच्च न्यायालयों मे इस पर कई हृदय विदारक विचार दिये गए हैं । पर सब महत्वहीन रहा। कोर्ट ने सुना हो न सुना हो भारतीय पतियों को नींद मे, सपनों मे,महिला संगठनो की उठायी आवाज गूँजती होगी:
वैवाहिक बलात्कार कानून (Marital Rape Law) से सतयुग की वापसी और जनसंख्या नियंत्रण का विचार ही अपने आप मे विलक्षण और अति उत्तम है। भले ही केंद्र सरकार इसके इसके पक्ष मे न हो (पर क्यो नहीं है वो तो एक अति संवेदनशील सरकार है इन मामलो मे?) लेकिन मुझे इस बात से आश्चर्य है की आखिर ऐसा क्यो नहीं हुआ, क्या है जो अटक रहा, खटक रहा है? या फिर सरकार का पिच्छला सब कुछ दिखावा था और यही असली चेहरा है? मुझे लगता कि अगर सतयुग कि वापसी हो गयी तो सरकार को भगवाकरण का ताना झेलना पड़ेगा, उसी से परहेज है ये सब। पर खारिज हो गया। खैर राजनीति नहीं लॉं की बात की जाये फिलहाल। ये मुद्दा कितना महीन और नवीन है, फिर भी महत्वहीन है। भारत की सूप्रीम कोर्ट और कई उच्च न्यायालयों मे इस पर कई हृदय विदारक विचार दिये गए हैं । पर सब महत्वहीन रहा। कोर्ट ने सुना हो न सुना हो भारतीय पतियों को नींद मे, सपनों मे,महिला संगठनो की उठायी आवाज गूँजती होगी:
किसी से शादी करने से आपको उसके शरीर पर संपत्ति का अधिकार नहीं मिलेगा। जब भी आप अपने पार्टनर के साथ नहीं चाहते तब भी आपको किसी से संभोग, सेक्स करने का अधिकार नहीं है। शादी आपको जब मन चाहे सेक्स करने के लिए एक मुफ्त पास नहीं देती है। सेक्स कोई बाध्यता नहीं है। यह एक ऐसा कार्य है जिसके लिए दोनों पक्षों की सहमति आवश्यक है। आपकी पत्नी की ‘ना मतलब ना होता है’।पतियों मे चारों तरफ भय और असमंजस का माहौल बनता दिख रहा होगा, रात्रि तो रात्रि, दिवा स्वप्न भी आते होंगे। विवाहित जोड़े के बीच संयुग्मक अधिकार (conjugal rights) हैं, परंतु ये अधिकार उचित व्यवहार की सीमा के भीतर मौजूद हैं, ये बात भारतीय पुरुषों को समझ आने के लिए हिंदुस्तानी बुद्धि कम है। हिंदुस्तान की गर्मी के मौसम मे "गुनगुना विदेशी न्यायशास्त्र" बेअसर है, विदेशों मे जो होता वो यहाँ भी हो ये मुश्किल सी बात है। पर सुनना तो पड़ेगा, सुन्नी हो या शिया, सरकार हो या कोर्ट, आवाज़ नारी की है और काफी भारी है, दर्द भरी और एक "विशेष औचित्य" वाली है। सुनेंगे तभी तो सामाजिक न्याए होगा, सही आचरण होगा। किस आधार पर, कैसे, कितना, और कितने प्रतिशत पता नहीं, पर होगा। कमरो के अंधेरे मे से ही दाम्पत्य का पौधा बिना रोशनी के सींचा और ऊंचा खड़ा किया जाना होगा।
भारत समेत दुनिया के कई देशों में वैवाहिक बलात्कार पर कोई कानून नहीं हैं, तो वहीं बहुत से देशों ने इसे अपराध की श्रेणी में रखा है। भले ही भारत की संस्कृति अलग है तो क्या, बच्चे पैदा करने मे तो सबसे आगे हैं, इसलिए इस मायेने भारत मे इसके होने का हक़ तो बनता है। इस गलती हो गयी। इस मामले को शशि थरूरजी की भारी भरकम अङ्ग्रेज़ी भाषा और संकृति के साथ एक बोल्ड सोच के साथ उठवाया जाना चाहिए था क्यो की वे ही "महिलाओं के यौन, प्रजनन और मासिक धर्म अधिकार" का प्राइवेट बिल सदन मे लाये थे। अब कितना भारतीयो को समझ आया होगा, पता नहीं । गहरी विचारधारा भारत मे अपने आपने मे मे एक चुनौती है, जो चीज़ विदेश से पैक होकर महंगी न आए तब तक वो अमल करने योग्य नहीं है। गड्ढा हो या विचार भारत मे गहरा नहीं होना चाहिए। और खुद के द्वारा खोदा गया तो बिलकुल ही नहीं। बने बनाए गड्डे मंगवाना ही सही समझा जाता है गिरने के लिए । कीमत कितनी भी चुकनी पड़े सब तैयार हैं।
भारत मे वैवाहिक बलात्कार पर वर्तमान परिपेक्ष मे सिर्फ दो ही कानून हैं इस संदर्भ मे। पहला आदमी के द्वारा न्यायिक पृथककरण या अन्य स्थिति के दौरान अलग रह रही अपनी पत्नी के साथ उसकी सहमति के बिना संभोग करने पर भारतीय दंड विधान की धारा 376B के अंतर्गत लगभग 2 साल से 7 साल तक की जेल की सजा और आर्थिक दंड के साथ ये एक दंडनीय अपराध है। दूसरा महिला अपने पति के खिलाफ अप्राकृतिक संबंध बनाने के लिए भारतीय दंड विधान की धारा 377 के अंतर्गत मामला दर्ज करा सकती है। अतः कमी तो दिख रही है। ऐसा कानून न होना सम्पूर्ण पत्नी जाति के साथ अनयाय है। आवाज़ शहर की औरतें उठा रही हो लेकिन गाँव की की महिलाएं इतनी ज्यादा पीड़ित हैं की उनको तो स्वर्ग ही मिल जाएगा। शहर की पत्नियाँ भी अब नए नए स्वतन्त्र्ता के माध्यम इस कानून का सहारा लेकर ढूंढ पाएँगी। पुरुष भी इसका सहारा लेकर कोई उपाए ढूंढ ही लेगा, बद्दतर घर मे खाना नहीं मिलेगा तो बाहर खा लेगा।
एक तरह की स्त्रीजनित सामाजिक राष्ट्रीय आपदा समझ कर, वैवाहिक बलात्कार के कानून को पता नहीं क्यो सरकार लंबित किए जा रही है? आदरणीय सूप्रीम कोर्ट भी इस पर (377) समलेंगिगता और (494) जारता की तरह जुड़ीशियल ऐक्टिविस्म (Judicial Activism)और संवेदनशीलता नहीं दिखा रही है? यह एक सोचनीए विषय है। धर्म, आचरण, हिन्दुत्व, विकास (मिलता जुलता ही तो है सहवास से) की बात करने वाली सरकार को ये उपाए कैसे नहीं लुभा रहा ये सोच कर ही महिला कार्यकर्ता अवसाद मे हैं। इस से एक तीर और कई शिकार संभव हैं कि जैसे भारत मे मुसलमानो और जैनो की बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण इत्यादि, इस कानून से से लोग सतयुग की तरफ लौटेंगे।
ये सुनने ,मे अटपटा सा लग सकता पर प्राचीन हिन्दू और सनातन संस्कृति मे सेक्स और सहवास मात्र संतान उत्पत्ति का एक साधन मात्र था। अपवाद स्वरूप अब ईसा से दूसरी शताब्दी मे लिखा ग्रंथ कामसूत्र बना भी एक वैश्यलाय मे घटित घटनाओ के ऊपर था, वात्स्यायन से पूछना पड़ेगा क्या सोच कर कामसूत्र की रचना की थी और नवी-दस्वी शताब्दी के राजपूत चंदेलों ने क्यो ऐसे मंदिर खजुराहो मे क्यो बनवाए? तब व्यभिचार और अति कामुकता अच्छी संस्कृति का अंग नहीं कहा जाता था। “अंग से अंग लगाना सजन हमे ऐसे रंग लगाना " लोग पहले भी गाते होंगे लेकिन तब “वीर्य रक्षण” संस्कृति का बोल बाला था। ब्रहमचर्य चरम पर था। नए जमाने की भाषा मे NoFAP और Celibacy कहते हैं। पहले ब्रहमचर्य के द्वारा ही इतनी सृजनात्मकता, ओज और संस्कृति का उत्थान शिखर को छू गया था। आज तो ये भ्रम-चर लगता है। आज “चरम” का अर्थ ही अलग है। बिना "orgasm" के क्या जी पाएंगे लोग? क्या स्त्री पुरुष इसके लिए तैयार हैं? चलो पुरुषों को तो सरकार का आदेश मानने को मजबूर होकर मन मसोच कर रहना पड़ा भी तो अन्य महिलावदी कानूनों की मार के साथ ये भी सह लेगा, पर पत्नी?
स्त्री त्याग की मूर्ति है और कोई बड़ी बात नहीं ये भी संभव हो, लगता है। जब राम मंदिर बन रहा तो, मन मंदिर मे बदलाव लाना क्या मुश्किल। और शरीर भी तो एक मंदिर ही है। कई मंदिर ऐसे हैं जिनमे एक भी श्रद्धहालु नहीं आते पर उस से उसकी गरिमा कम तो नहीं हो जाती। कोई संशय नहीं कि इस से भारत मे अब जल्दी सतयुग की वापसी होगी क्यो कि त्रेता, द्वापर युग के तो भरपूर सेक्स और आनंद प्रमोद के किस्से किताबों मे मिल जाते हैं, वो कोई मॉडल नहीं। और ये तो वैसे भी कलयुग है। कलयुग मे नगरवधू सभ्यता (courtesan) भी यहीं थी। वो हिंदुस्तान था आज भारत है। पत्नियों का सतयुग की वापसी और मांग करना एक अत्यंत ही सरहनीय और परिश्रम और त्याग से भरा कदम है। अगर मेरी बात मे कोई संशय लगता है तो बहुत मटिरियल है गूगल पर पढ सकते हैं इस पर, शास्त्रो की क्या बात करें उसपर अलग एक बड़ी पोस्ट बनेगी। मोटा मोटा ये समझिए की विवेकानंद से लेकर कई बड़ी हस्तियो ने इस पर बहुत विचार कर रखा हुआ है और मार्ग भी दिखाया हुआ है। अगर कोई पुस्तक पढना हो तो एक मज़ेदार और ज्ञानवर्धक पुस्तक है: 1942 मे लिखी स्वामी शिवानंद की "ब्रहमचर्य ही जीवन है और वीर्य नाश ही मृत्यु"। फ्री है ऑनलाइन मिल जाती गूगल पर पढ़ सकते हैं ।
हाँ कुछ लोगों के मन मे एक विचार आ रहा होगा कुछ विशेष लोगों का उदाहरण को लेकर, लेकिन मुझे उनलोगों से कोई मतलब नहीं, न उनके बारे मे बात करना, खास कर उन विदेशी गोरो की जिसको देख देख भारतीय काले मन के लोग जल्दी आकर्षित हो जाते हैं -- जो ये कहते की हमारे देश मे तो हम रोज़ दंपत्ती लोग भरपूर सेक्स करते, हम कौनसा दुबले पतले हो रहे, या मृत्यु को प्राप्त हो रहे या या हमारे यहाँ ज्ञान विज्ञान की कमी है। तो मेरा यही कहना है कि उनकी रक्षा उनके देश मे मौजूद वैवाहिक बलात्कार का कानून करता है, भारत देश मे यह नहीं है। जब तक नयी थियोरी नहीं आती पुरानी ही चलेगी। भारत मे ये कानून क्या-क्या नया ड्रामा लाएगा ये भी एक मज़ेदार विषय है।
(to be continued....)
लेखक कि नवीन कृति, ज्ञानवर्धक विधि -वैवाहिक पुस्तक पढ़ें:
Caution Money
For dangerous Laddoos of marriage
यह पुस्तक भारत में प्रत्येक कुंवारे पुरुष के लिए एक पूर्व-वैवाहिक पाठ्यपुस्तक है। वर्तमान न्याय व्यवस्था मे सकुशल रहने हेतु एक नवीन कानूनी संकल्पना एवं मार्ग को बताती पुस्तक। वैवाहिक संकट से घिरे हर पुरुष के लिए इसे एक अग्रदूत के रूप में पढ़ा जाना चाहिए। देश मे अपने तरह कि पहली पुस्तक। घर से कोर्ट तक हर जगह आपका मार्ग दर्शन करेगी ।
भाषा : अँग्रेजी
मूल्य : 250/-
ऑर्डर हेतू इसपर क्लिक करें:
https://pothi.com/pothi/book/puneet-agrawal-caution-money
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Good article..eye opener..
ReplyDeleteThanks, do read the second part, the crux lies there. Coming soon.
DeleteHowever you got hold of that side of the story with is a part of sarcasm. Read the other part as well, you will find the message clear.
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