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Thursday, 16 January 2020

येन केन प्रकारेण -- मुकदमा विजयी

लेखक: डॉ पुनीत अग्रवाल

पहले तो आपको यह  क्लियर कर दें कि आप उनमे से नहीं हैं  जिनको लेख की हेडिंग ही बकवास लगी है वे  तो ये पढ़ ही नहीं रहे होंगे, अगर आप ये लाईन पढ रहे हैं मतलब आप के अंदर जीतने की इच्छा अभी बाकी है और आप खुद को 21 वीं सदी का साईंटिफ़िक पुतला बोलकर, केस जीतने के नए मौका खोकर, खुश रहने वालो मे से नहीं हैं। आप नया कुछ सीख कर, उसको जान कर, उपयोग कर के, अपना भला करने वालों मे से एक हैं । पुराना गलत सीखा हुआ भूल कर नयी, सही और सटीक जानकारी लेना कठिन पर एक ज़रूरी प्रक्रिया है इस लेख से लाभान्वित होने के लिए। आप अगर इस लेख को धर्म, या अंधविश्वास से जोड़कर देखते हैं तो कृपया इसको अवश्य पढ़ें आपका  भ्रम अवश्य दूर होगा । जो इस पर शास्त्रार्थ करना चाहते हैं, उनका स्वागत है, कोर्ट की छुट्टियों मे कभी भी कर सकते हैं। बाकी सब कृपया आगे पढ़ें।

भारत मे अब कोई नयी बात नहीं है झूठे मुकदमो का लगना, उनमे फंसना, फंसे रहना, और फिर निर्वस्त्र-स्वरूप होकर दीन-हीन धन, आयु, और परिवार, सुख संपन्नता को खोकर उस से मुक्ति पाना। और कुछ होते हैं जो कम नुकसान उठाकर बाहर निकाल जाते हैं। और कुछ बिरले बिना नुकसान के जीत जाते हैं। आप कौनसी कैटेगरी के हैं और कौन  सी मे जाना चाहते  ये आप पर निर्भर करता। सभी के अपने रॉ मटिरियल हैं, तरीके और नियम कायदे हैं और सबसे ऊपर अच्छी  बुरी किस्मत। किस्मत क्या है और कैसे बदल सकते ये आज क विषय नहीं है। लेकिन ज़रूरत के लिए बहुत कुछ है जो बदला जा सकता, काफी कुछ रोका जा सकता और कुछ से लड़ा जा सकता और आखरी मे कुछ एक से से तरीके से हल्के झटके से हारा जा सकता । सब कुछ ज्ञान, विश्वास, क्रिया, अथक प्रयास, सही मार्गदर्शन और पुण्यों पर निर्भर है । और सबसे ज्यादा ज़रूरी आपकी द्रढ इच्छा  शक्ति और जीतने का आत्मविश्वास । 

अभी  पुरुष अधिकारो, महिला वादी कानूनों और फॅमिली कोर्टों के क्रिया कलाप, ढेर सारे मेंस राइट ग्रुप्स पर मौजूद अनगिनत न्यायदृष्टांतों की धूप-छांव  और  पुरुष आयोग मांगने वालों की ललकार इत्यादि की बात ये सब को पूरी तरह छोड़कर ये मान लेते हैं की आपको केस कैसे लड़ना है ये आपके अच्छे वकील से आप जान चुके हैं और संतुष्ट हैं।  (जो की वास्तव मे एक विस्तृत अन्य लेख का विषय है )  परंतु  वकील , आपके, घरवालो, आपके मित्रों, इत्यादि के पूरे प्रयासों के बावजूद भी आप अपने केस मे सिर्फ गर्त मे ही जाते जा रहे हैं । आप निराश होते हैं  और भारतीय न्यायव्यवस्था को कोसते दिखाई देते हैं। क्यो? क्यो कि हर बार कोर्ट या बाहर कुछ न कुछ कमी रह जाती है।  जीतते-जीतते सब उल्टा पुलटा हो जाता। यहाँ  पर दूसरे लोग ऐसी समान परिस्थिति मे तो जीत रहे होते पर आप खुद को श्रपित, मनहूस, बेबस और परेशान पाते हैं: "कुछ हो जाए, कोई तो कुछ बता दे, कहीं से कुछ मिल जाए, जज बादल जाए, कोई नया जजमेंट मिल जाए, कोई नया वकील मिल जाए, बीवी का कुत्ता मर जाए , पत्नी क्रॉस मे सब उगल जाए, उसके दो चार फोटो और विडियो कहीं से मिल जाए, उसकी जॉब का पता भर  मिल जाए , बस एक चमत्कार हो जाए और मै केस जीत जाऊँ"। पर ऐसा होगा कैसे, जब तक ऐसा होने के लिए जगह नहीं बनाई जाएगी? 

जब आप उचित कानूनी रणनीतियों से अवगत होते हैं, तो आप एक कानूनी मामला जीत सकते हैं, अदालत की प्रक्रियाओं को जान सकते हैं, और जान सकते हैं कि किसी विशिष्ट स्थिति में क्या करना है। जब कानून सख्त होते हैं तो आपका उद्देश्य कुछ क्षणिक दुविधा में फंसने के बजाय लंबे समय में राहत पाने का होना चाहिए। ऐसे सभी कोर्ट-क्राफ्ट निरर्थक हैं।  जब आपका पैरानॉर्मल इंडेक्स कम होता है, आपकी आभा कमजोर होती है, आपकी शुरुआत मंद होती है, और सबसे बढ़कर, आपके कार्यों में कमी और एक बल  का आभाव होता है।सांसारिक रणनीतियों के अलावा,  ब्रह्मांड के अन्य आयामों से सावधानीपूर्वक खींचे गए कुछ नवीन, भौतिक, आधिभौतिक, वैज्ञानिक, अतिरिक्त-सामान्य और गुप्त-ऊर्जा -गतिविधियां हैं, जो आपको मजबूत बना सकती हैं और आप केस जीत सकते हैं।

आप ये सब माने , विश्वास करें या ना  करें, आपकी विपक्षी पार्टी कोई कसर नहीं छोडती आपको  नेस्तनाबूद करने मे, वो ये सब हतकणडे अपनाती है, कुछ सफल, कुछ असफल और कुछ अज्ञात असर वाले  । ऐसे मे कुछ लोग अपने प्रकृतिक स्वरूप, भाग्य, वातावरण की श्रेष्ठता, माता  पिता के सुरक्षा कवच, इत्यादि से आंशिक या पूर्ण रूप से बचे रहते हैं  पर कौन कितना कितना परसेंट भाग्य शाली है इसका पता किसको है? और दूसरा, बार बार के हमलो और पैदा किए गए दुर्भाग्य को कौन सा कवच कब तक आपकी रक्षा करेगा इसको भी कौन सटीक बता सकता। इसलिए अतिरिक्त सुरक्षा और हथियारों की अवश्यकती पड़ती  है, और इनको खोजना, और इस्तेमाल किया जाना उतना ही आवश्यक जितना कोर्ट मे मे हरे कागज़ और वकील का होना ज़रूरी  होता है । 

बस कुछ भी करने और सीखने और उसके प्रयोग से पहले कुछ सावधानी ज़रूरी। कहीं कोई सरकारी और संवैधानिक नियम न टूट जाए और आप एक नए केस मे फंस जाएँ। दूसरा कोई ऐसी अप्राकृतिक और घिनौना कृत्य न कर दें जिस से आप और  आपका परिवार दोनों शर्मिंदा होना पड़े। साथ ही  महाराष्ट्र और कर्नाटक भारत के दो राज्य ऐसे है जिनमें अंधविश्वास निरोधक कानून लागू है उस से भी आपको बचना होगा। याद रखिए अंधविश्वास, एवं  जादू टोने और प्रकृति की गुप्त शक्तियों का विशेष प्रकार से दोहन और इस्तेमाल, दोनों मे बहुत फर्क है। सब कुछ उसको करने के तरीके मे और लाभ लिए जाने की प्रकृति मे है। एक शमशान है एवं एक लैबोरेटरी और घर की बलकनी है। 

कुछ लोग अगर ये सोचते की भूत प्रेत टोने टोटके सब बकवास हैं, अंधविश्वास है , कुछ अगर ये मानते की इन सबका कोई प्रूफ नहीं है, या कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, या कुछ ऐसे भी हैं जो बिल्ली का रास्ता काट जाने पर रुक जाते हैं । तो सभी कोटी के श्रद्धालुओं को ये जान लेना चहिए की भारत मे ऊल जलूल ज्यादा प्रचलित होता और लंबे समय तक बना रेहता है जिसमे सत्य दब जाता है । विज्ञान, प्रकृति और अव्यक्त  की खाई को ऊर्जा और उसके कार्य करने के तरीके ही भर सकते हैं। हम यहाँ इनकी बात भी नहीं कर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं एनर्जि मैडिसिन और कुछ ऐसी मंत्र और अन्य मानसिक तंत्र  क्रियाओं की जिनसे आप सशक्त बन कर केस जीत सकते हैं ।

अब निश्चय ही एक दम से खयाल आया होगा वो फलाने बाबा, बंगाली तांत्रिक, ज्योतिषी क्या सही बताते , पंडित जी क्या जदुई तावीज़ देते,  पीर साब जिन्नातों से पूछ कर सब बता देते , बड़े ऊंचे पहूँञ्चे हुये हैं, तुम्हारी मौम्मी उनको जानती हैं, ये लेख पड़ने का कोई मतलब नहीं अब। तो बढ़िया है, आप जानते हैं, पर क्या अपने उनका इस्तेमाल अपने केस को जीतने मे करा? क्या वो ऐसा कुछ करने मे मदद कर भी सकते हैं? (किस मेथड से करेंगे अभी मै उसमे नहीं जाऊंगा।) अगर हाँ, तो करा क्यो नहीं? आपकी माताजी पिताजी गए तो ज़रूर होंगे पर आधी अधूरी श्रद्धा और विशवास के साथ सिर्फ दिल को बहलाने। अभी तक उनका उपयोग नहीं करा तो आज ही कर लो, अच्छा बुरा , टाइम, पैसा वेस्टऔर इत्यादि  और वाकई असर हो तो केस जीत कर लड्डू हमे भी खिलाइएगा। लेकिन अगर कुछ  और होता न दिखे, सिर्फ पर्स और दिमाग हल्का होता दिखे तो आगे पढ़िये। 

आप पर केस लगा है तो आपका सिर्फ  एक ही धरम और करम है , केस को जीतना । लीगल तिकड़म के लिए दूसरे लेख उपलब्ध  हैं। यहाँ ये समझिए की साम, दाम दंड , भेद, मारन, मोहन, वशीकरण, स्थंभन, उच्चाटन, येन केन प्रकारेंण आपको केस जीतना ही होता है । ये एक लड़ाई है और हारना सबसे बड़ा अपराध है । अब बाज़ार मे और बहुत  कुछ उपलब्ध है काली कवच से लेकर देवी बगलामुखी तक, दश महाविद्या से लेकर भैरों अनुष्ठान तक । नीलम, हीरा पहनने से कबूतर, उल्लू के पंख से हवन करने तक । आप इनका उपयोग करके लाभ उठाना जानते तो ज़रूर करिए। बस करने वाला सही हो और सही कार्य और क्रिया की जाये। कहीं उल्टा फूलता करके मानसिक रोगी न बन जाना ये ध्यान रखना । ज़िम्मेदारी आपकी। इन सब  तंत्र , मंत्र, यंत्र, जाप, पूजा, उपास इत्यादि काली , सफ़ेद विद्याओं के अतिरिक्त एक उजली शाखा भी है जो थोड़ी मज़ेदार, और समझे मे आने वाली भी है। वो है एनर्जि मैडिसिन (energy medicine) जिसको काफी उपयोगी तरीके से इस्तेमाल करके आप जीत के करीब पहुँच सकते हैं। भाग्य होता है या नही,  ये भी हम आज नहीं बात करेंगे, लेकिन अगर आपके लीगल कैरियर मे क्या क्या ,कब कब  होने की संभावना है इसकी जानकारी सटीक प्राप्त करके यदि सही ऊर्जा से उसकी कमी को दूर करके केस जीतकर भला हो सकता तो क्या फर्क पड़ता। अब आप ज्यादा सुखी हैं  या वो जो फ़िज़िक्स मे PhD  खुद को अंधविश्वास से दूर रखने वाला बुद्धिजीवी जो केस हारकर अपना अहम सुरक्षित रखे हुये है? एक्जाम मे अच्छे  नंबर आने चाहिए गाइड से पढ़ो या नोट्स से या दोनों से  क्या फरक पड़ता। देखिये, ये पैरानोरमल (paranormal) विज्ञान अभी दुनिया मे एक बचपने की स्टेज मे है। अभी इसमे कोई विशेष काम नहीं हुआ है। बाकी सब छोड़ कर काम की बात जानिए, इसपर लैक्चर मुझे से कभी और लीजिएगा।

चलिये अब सीधे मुद्दे पर, भूमिका काफी हुयी। देखिये ज्योतिष शास्त्र की सटीक गढना करना कठिन कार्य होता है, मंदिर मे बैठा पंडित ये कार्य करने मे दक्ष हो ये ज़रूरी नहीं। ज़्यादातर ज्योतिषी काफी कुछ अच्छा या बुरा होने की डेट्स बता देते हैं और ढेरो उपाय। लेकिन असली खेल तो कोर्ट की प्रोसीडिंग्स और लड़ने के तरीके पर टीका होता  सही गढना अगर हो तो आप ये पता कर सकते और  सफला पूर्वक केस लड़ सकते जैसे : 

आप क्या कभी, कब और कब तक -- कोर्ट केस मे फसेंगे?
क्या बार बार फसेंगे या एक बार के बाद मुक्ति?
कब कब केस मे आपकी पत्नी का पलड़ा भारी होगा, कब आपका?
कब कब कोर्ट से जेल जाने के योग हैं ?
कब कब कोर्ट से धन हानी के योग हैं ?
किस दिनाक तक केस खत्म होने के योग हैं ?
क्या भाग्य से ज्यादा युक्ति आपके काम आएगी?
क्या पैरानोरमल प्रयोग से केस जीतना सरल है?
किस तरह के प्रयोग से आप सशक्त हो सकते?
कौन सी बाधा है जो काम बिगाड़ रही है?
क्या अलग रहना बेहतर या पत्नी का त्याग? 
क्या प्रेम विवाह, या लिव इन रखना उचित होगा या दूसरा नया केस आ जाएगा? 

इस तरह के कुछ मोटे मोटे मुद्दे जान कर उपाय करने से केस लड़ना बहुत  सरल होता है। कई निर्णय सही लिए जा सकते हैं, सम्झौता इत्यादि भी सही समाये पर किया जा सकता है , लड़ाई कि फोर्स कि दिशा भी निर्धारित कि जा सकती है। ऐसे मुद्दों तो कोई अंत नहीं लेकिन कुछ और ज़रूरी जैसे : 

क्या बीवी व्यभिचारी है, या पर परपुरुष गामिनी (ये एक गहन विषय है ) 
क्या बीवी वन्ध्य (बांझ) है, या कोई बीमारी है जो छिपा रही है । 
क्या बीवी के मायकेे वाले नुकसान दे सकते 

अब जब आप इस लेवेल को पार कर जाएंगे, और जितना जल्दी करेंगे उतना अच्छा। फिर आता है प्रयोग और उपाए का तरीका। देखिये वैसे तो मंत्र अनुष्ठान बड़ा उत्तम तरीका है अगर सही शक्ति साधना से करवा पाएँ तो ठीक, अन्यथा स्वयं करना सर्वथा उचित रहता। लेकिन क्या? वो सब करिए जो आपको अच्छा लगता, लेकिन सही मार्गदर्शन हो तभी। भटकना खतरनाक होता। गार नहीं कुछ पता तो लेकिन एनर्जि मेडिसिन का सहारा लीजिये। जब आप ये समझ लेंगे की ये मंत्र कैसे काम करते तो आप स्वयं अपने मंत्र बना सकते। यही है वो साइन्स। (मेरी एक अधूरी पुस्तक "Throught Energy Paradigm" इसी विषय पर  प्रकाश डालने वाली अनोखी पुस्तक शीघ्र प्रकाशित होगी।) करना क्या है इस मे। कुछ थॉट एनर्जि के उपयोग  हैं और कुछ रिसर्च के द्वारा नवीन तरीके से अपने आस पास होने वाली और हो रही घटनाओ मे बदलाव लाने का विज्ञान है। विस्तार मे न जाकर थोड़े मे ऐसे समझिए की तंत्र इत्यादि कोई गलत नहीं है शॉर्ट कट टूल है कुछ करने करवाने का, बस लोग अज्ञान और गलत तरीके से करते। जैसे अपने हिपनोटिस्म सुना, हेममलिनी को देवानन्द ने सम्मोहित करके वश मे कर लिया। पर अगर इसका scientific, controlled, researched तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो जज को गलत निर्णय देने से काफी हद तक रोका जा सकता। आपकी बीवी को उसके झूठ बोलने के कारण उसे  उसके दिमाग को उलझाया जा सकता, रोज़ मर्राह की कोर्ट गतिविधियों को धीरे धीरे आपके पक्ष मे लाया जा सकता । हाइ कोर्ट इत्यादि  मे आपकी बात को सही तरीके से सुना कर सही ऑर्डर लेने मे मार्ग खुल सकता । अनगिनत  हैं। करना सिर्फ एनर्जि का सही उपयोग है अपने thought को सही उपयोग करके। 

ये भी याद रखिए ये लड्डू खाने जितना सरल नहीं है, खाने मे नमक जैसा कार्य करता है। शांति, संयम, मेहनत, और फोकस रहकर करना होगा। किसी की एक्शन का रिज़ल्ट वेस्ट नहीं होता यूनिवर्स मे, याद रखिए, रिज़ल्ट ज़रूर आता है । बस सब कुछ नियम से कारण होता, पर सही चीज़, सही तारीक से सही समय । इस तरह के पॉज़िटिव प्रयोगों से मन भी संयमित रेहता, बुरे विचार नहीं आते, आप सही मार्ग पर जाते, सही आदमी से मिल पाते, सही निर्णय लेते, और परिवार भी प्रसन्न रहता। आपका  पैसा गलत लोगों मे डर घबराहट के कारण लग्ने से बचता । आपके चेहरे  पर एक चमक रहती जिसकी रोशनी मे आपके विपक्षी कुछ बुरा नहीं कर पाते । अब आप कहेंगे मै तो महान योगी पहले से ही हूँ रोज़ ध्यान करता, रेकी करता, दुर्गा कवच करता इत्यादि मुझे इसकी ज़रूरत नहीं। बिलकुल सही बिलकुल करिए सही राह पर है आप, जल्दी से केस जीतकर आइए और जल्दी लड्डू खिलायें। अन्यथा thought process को energy के साथ यूज़  करके universe मे चेंज लाइये और केस  जीतिए।  जैसे उदाहरण के तौर पर आपकी बीवी आने वाले 1 साल स्ट्रॉंग पोसिशन मे आती दिख रही, कोर्ट मे भी लग रहा कि सही भी गलत हो रहा क्रिमिनल कोर्ट मे, तो आप को उस विशेष कारण को साधना होगा जो ऐसा करवा रहा। फर्क देखिये,  दिखता है, अच्छा Advocate,  अच्छी  सलाह, सही उपाय और सही क्रिया। सब सही करने मे मदद करती। करके देखिये। फालतू पोंगा पंडितों के चक्करों मे पैसा लौटाने  से अच्छा स्वयं कुछ नया सीखिये, प्रकृति से जुड़िये और ज्ञानी और कॉन्फिडेंट और मुकदमा विजयी बनिए। 

तूने ज़िंदगी को किताबों से देखा तू बड़ा होशियार
जिसने तुझे किताबों मे देखा वो तुझ से बड़ा जानकार

दुनिया का ज्ञान लेकर तू शंकराचार्य कह लाएगा 
दुनिया को ज्ञान देकर तू बुद्ध हो जाएगा 

मर्म इसमे है कि ज्ञान की उपयोगिता  कब है,
ज्ञान से ज्ञान को जकड़ने मे कौनसा सुख है। 

इसमे अगर आपकी रुचि जागृत हो रही है, होना लाज़मी भी है ये साँप और सपेरों का देश जो है (या था ), चमत्कार को नमस्कार है यहाँ। अब ये बात अलग है कि अज्ञान भी एक चमत्कार ही है जो कैसे एक पल मे दूर हो जाता पता ही नहीं चलता । नहीं लगता आपको, कैसे सूप्रीम कोर्ट का एक अच्छा जजमेंट मिल जाने  से आप कि आँखें  चमक जाती। तो इच्छा शक्ति हो तो अब आप इसके लिए खुद को तैयार करिए, और लग जाइए काम पर। बस हमे लड्डू का इंतज़ार रहेगा । ऑनलाइन भी भिजवा सकते हैं । 




लेखक कि नवीन कृति, ज्ञानवर्धक विधि -वैवाहिक पुस्तक पढ़ें: 

Caution Money
For dangerous Laddoos of marriage

यह पुस्तक भारत में प्रत्येक कुंवारे पुरुष  के लिए एक पूर्व-वैवाहिक पाठ्यपुस्तक है। वर्तमान न्याय व्यवस्था मे सकुशल रहने हेतु एक नवीन कानूनी संकल्पना एवं मार्ग को बताती पुस्तक। वैवाहिक संकट से घिरे हर पुरुष  के लिए इसे एक अग्रदूत के रूप में पढ़ा जाना चाहिए। देश मे अपने तरह कि पहली पुस्तक। घर से कोर्ट तक हर जगह आपका मार्ग दर्शन करेगी ।

भाषा : अँग्रेजी
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Wednesday, 15 January 2020

वैवाहिक बलात्कार कानून द्वारा सतयुग की वापसी - II

लेखक: डॉ पुनीत अग्रवाल
Image source: thehindu.com

भाग एक से निरंतर ...

भारत देश मे वैवाहिक बलात्कार कानून क्या-क्या नया ड्रामा लाएगा ये भी अब जान लिया जाये। पिछले लेख मे सतयुग की वापसी पर ज़ोर दिया गया था और मामला उलझ सा गया था। पर ऐसा नहीं है, ये कोई घने ज़ुल्फों की छाँव नहीं है जिसमे सब उलझ कर रह जाए। यह एक राष्ट्रीय अस्मिता का मुद्दा है। बहुत विचार के बाद यह ही निकाल के आया कि किसी और की ज़िद, सुविधा, और गलती की सज़ा एक भरे पूरे नर को क्यो दी जाए। यदि मादा स्त्री भर बन के रहना चाहती तो ये उसकी चॉइस है पर ये भी वो अकेले नहीं चुन सकती, पर अगर वो ये चाहे कि नर पुरुष भर बनके रहे ये मांग करना अनुचित है। इस से समझ मे कन्फ़्यूजन और रोष उत्पन्न कहीं न कहीं कभी कभी तो होगा ही। सो हो गया। ये ही सोचता दिख रहा भारतीय पुरुष...

देवी है तू मंदिर मे रहकर तो पूजी ही जाएगी,
पैरों की ठोकर
मे आयी तो भी अहिल्या ही कहलाएगी ।
देवता बन भी गया मै, तो भी मुझे अप्सरा कि ज़रूरत पड़ने वाली है,
देवी कभी धरती पर उतर कर घर नहीं आने नहीं वाली है। 
कभी तुझे मन करा भी आने को, तो भी तुझे रोक लेंगे तेरी अस्मिता के पहरेदार
कि तुझे छू न लूँ मै, कहीं बनकर तेरा दावेदार। 

इसी असमंजस मे पुरुष दुबला हुआ जा रहा। जो कुछ कहीं से पोषण प्राप्त कर रहे वे ही बलात्कार जैसी कृत्य कर रहे जिसकी सज़ा दूसरे पुरुषों को नर का रूप नहीं बदल पाने के रूप मे मिल रही। वैसे आपको ये शब्द बलात्कार पता है क्या होता है। सबका होता है, फिल्मों मे सिर्फ लड़कियो का होता पर घर मे बच्चों और पुरुषों तक का होता। घ्रणित है इसलिए इसके मूल को ही मिटा दिया जाना चाहिए। ना रहेगी फूँक न बजेगी बांसुरी। अब “भूख” मत पढ़ लीजिएगा इसको। अलंकार की अपनी मर्यादा होती है, जैसी की प्राचीन काल मे हुआ करती थी, अमूमन हर क्रियाय कलाप की भारत मे। बलात्कार की भी थी। “बलात्कार का इतिहास इण्डिया से भारत तक” ये लेख पढ़ा है की नहीं आपने?

प्राचीन काल में राजा, महाराजाओं, सामंतों और धनपतियों के यहां घरेलू कामकाज करने वाले चाहे वे पुरुष हो या स्त्री उन्हें मजबूरन बलात्कार का शिकार होना पड़ता था। अब आपको ये तो पता ही है घर मे धन किसके पास सबसे ज्यादा होता है? वैसे रेप की घटनाएं भारत में कम इंडिया में ज्यादा होती हैं, क्योंकि वहां विदेशी सभ्यता का असर ज्यादा दिखाई देता है। बलात्कार पश्चिमी सभ्यता की देन है। अगर लोग भारतीय संस्कृति को अपना लें तो इस तरह की घटनाएं बंद हो जायेंगी। बस आ गया सतयुग। वैसे ये बात अलग है की बाइबल से लेकर कुरान तक और विष्णु पुराण से वृहदारण्यक उपनिषद तक सब मे स्त्री हिंसा के वर्णन मिलते हैं। इसिलिय इन सब किताबों से पहले का सतयुग ही सर्वोत्तम है।

वैसे पति के द्वारा पत्नी के साथ किए बलात्कार पर सभी धर्म ग्रंथ मुह फुला कर साइलेंट हो गए हैं।  वर्णन के नाम पर भाषाकारों की अतिवादी टीका टिप्पणी के सहारे हैं। लेकिन हाँ, बलात्कार केवल आज के युग का जघन्य अपराध नहीं है, बल्कि वैदिक काल से इसे सबसे घृणित कार्य माना गया है। पुराणों में इसकी कठोर सजा का उल्लेख मिलता है जिसे सुनकर ही रूह कांप जाए। गरुड़ पुराण के अनुसार बलात्कार के लिए क्या-क्या सजाएं मुकर्रर की गयी है-- बलात्कारी या व्यभिचारी को वैतर्णी नदी में से होकर यमपुरी मार्ग की और ले जाया जाता है, नर्क में ले जाकर यमराज इनको तामिस्त्र नामक नर्क में भेजा जाता है जहां कई वर्षों तक लोहे के एक ऐसे तवे पर रखा जाता है जो सौ योजन (चार सौ किमी) लंबा एवं इतना ही चौडा होता है। इस तवे के नीचे प्रचंड अग्रि प्रज्वलित होती है और ऊपर से सौ सूर्यों के समान तेज धूप आती है। इस तवे पर बलात्कारी को निर्वस्त्र कर छोड दिया जाता है! अब कौन पति अपनी पत्नी के साथ ऐसा वैवाहिक बलात्कार करके नर्क मे इतने यमदूतो के सामने निर्वस्त्र होना पसंद करेगा? और इनमे से किसी यमदूत ने भारत की नयी धारा 377 के संशोधन कानून को जान कर.... यदि उसका मन उस गोरे चिकने पति पर आ गया तो ....? पति फिर वहाँ भी एक उपभोग की वस्तु भर बनकर रह जाएगा गरम तवे पर । उसको वहाँ उस ताकतवर पार्टनर से कौन बचागा। ज़मीन से उठा खजूर मे अटका।  ऊपर यमराज का कानून और डिवाइन रेप (divine rape) नीचे सरकार का कानून और मैराईटल रेप (marital rape)। ये रेप शब्द पूरी सृष्टि मे किस देवी के आशीर्वाद से व्याप्त हो गया, पता नही?

इस से तो नीचे ही भला था। अपनी बीवी की बात मान लेना ही बेहतर। सूख कर दुबला दुखी होना उस तवे पर जलने से बेहतर है । तो चलो सब कुछ भूल कर इस मांग, इस कानून, इस नयी परंपरा को मूर्त रूप दिया जाये । कैसे? समझा जाएगा। कुछ प्रेक्टिकल प्रॉब्लेम्स आएँगी इस कानून से, और ड्रामा भी हो सकता। पर बहता पानी अपना रास्ता बना ही लेता है। जैसे समझते हैं.....

किसका मूड कब बनता है, कब दोनों का मूड एक साथ कब और कैसे बनेगा, इत्यादि बातें अब भूलनी होगी। सिर्फ एक तरफा ट्रेफिक मे गाड़ी चलाये जाने की आदत भारतीय पुरुषों को डालनी होगी। देखा जाय तो साल भर पढ़ाई कर के एक बार दिये जाने वाले एक्जाम की तरह ही प्रतीक्षा कर कार्य सम्पन्न करना होगा। और ट्रेफिक रुल्स भी बने जा चुके गए होंगे, उन पर ही गाड़ी चलना ही परम आवश्यक होगा। अब पत्नियाँ पति पर गाड़ी का एक एंगल गलत भर मुड़ जाने पर बलात्कार का आरोप जब लगा पाएँगी, तो पति भी acute एंगल को छोड़ obtuse एंगल की तरफ की दौड़ लगते दिखेंगे। कोई बड़ी बात नहीं right-angle नापते हुये सन्यास का मार्ग चुन लें या “straight” लाईन से हट कर खुद को ही ना बदल ले। जो भी हो इतना तो तय है की पुरुष आसानी से उपभोग की वस्तु बन जाएगा जो शायद स्त्री समाज की चिरकाल से पुरुष से बदला लेने की चाह का मूर्त रूप लेने का प्रतीक होगा। नारी कि इच्छाओं का सम्मान भी ज़रूरी।

तो फिर सतयुग की वापसी कैसे होगी, ये तो जैन साधू या सन्यासी बनते दिख रहे। क्यो नहीं होगी, बिलकुल होगी। आरे भाई पुरुष क्या कभी दबा है जो अब दबेगा, कहाँ कहाँ किस किस को और क्या क्या दबा कर के खुद को युगों से उठाए हुये है, पुरुषार्थ तो उसका कुछ था ही नहीं कभी सब कुछ उसने ऐसे ही “बलात” पाया है, आगे भी यही चलेगा और क्या। इसका नतीजा क्या होगा” सीधा सा है रोज की तू-तू मै-मै होगी, अलग से वैवाहिक बलात्कार शिकायत निवारण थाने बनाए जाएंगे । स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन होगा (ये कहना मर्यादा विरुद्ध नहीं होगा कि ये कोर्ट “urinary tract” कोर्ट कहे जाने लगे आगे भविष्य मे!) जहां पर  कोर्ट परिसर मे ही pathology, forensic laboratory जैसा माहौल होगा। अच्छा है इसी बहाने स्वाथ्य के प्रति जागरूकता आएगी भारतीयों मे। फिर होगा क्या? कुछ नहीं, एक नयी व्यवस्था का अगास होगा। हर चीज़ कांट्रैक्ट और एग्रीमंट से होगी। सीसीटीवी केमरों की मांग बढ़ जाएगी, IVF और कृत्रिम गर्भाधान के क्लीनिक्स की बाढ़ आ जाएगी, स्टम्प पेपरों की बिकरी से राजस्व बढ़ेगा, थानो मे बैठने के लिए फ़र्निचर, पानी के पियाऊ, आस पास चाय नाश्तों के ठेले, बिजली उपकरण, लिखने पड़ने की सामाग्री, रखने की अलमारी, वह सब कुछ जो एक मंत्रालय चलाने मे लगता का इंतेजाम किया जाएगा, पूरा बजट प्रावधान होगा, पूरी एक अर्थव्यवस्था को संबल मिलेगा। भारी आर्थिक मंडी से बाहर आने का भी एक सुनहरा आइडिया है।

ये कोई अतिश्योक्ति नहीं है, एक प्रकृतिक और व्यवहारिक सत्य है। ऐसा इसलिए होना तय है क्यो कि कौन पति कब पत्नी के साथ संबंध बनाएगा और कोन पत्नी कब पति को आलिंगन हेतु अनुमति देगी इसका ब्योरा, समय, अवधि, तरीका, किस mode से होगा, कितना..... ये सब की जानकारी थाने को विधिवत दी जाएगी, अनुमति मिली तो ठीक, न मिलने पर कोर्ट मे अर्ज़ी लगानी होगी जैसे पुलिस द्वारा FIR दर्ज न करने पर सीआरपीसी कि धारा 156(3) मे कोर्ट मे जाते हैं। कोर्ट फिर शायद अपनी विधिवत प्रक्रिया अपनाकर एक commission, दल भेज कर मुआयना करवा सकती, रिकॉर्डिंग डिवाइस की उपयोगिता, वैध्यता, इत्यादि चेक की जाएगी तब NOC मिल सकती। अब लो एक और बात बताना तो भूल ही गया, इसी बीच संविधान पीठ को भी बैठना पढ़ सकता, अंतरंग विडियो रिकॉर्डिंग संबंधी नियमो मे बदलाव हेतु। एक और बड़ी बेंच बैठना होगी निजता के अधिकार के पुराने फैसले को पलटने के लिए। इन सब के द्वारा अनुमति मिलने मे कितना समय लगेगा ये सब सरकारी महकमे की मेहरबानी, सरकार की रुचि, भ्रष्टाचार की स्तिथि और न्यायालयों की व्यस्तत  पर निर्भर करेगा। जितना ज्यादा सेक्स समाज और दंपत्ति के मध्य मे होगा उतना टाइम और आवेदन अधिक होंगे और उनका निस्तारण मे समय लगेगा। आगे दृश्य  ऐसा देख सकते हैं की सेक्स पर्मिशन हेतु मैरिज रैजिस्ट्रार के दफ्तर मे या डेन्टिस्ट की क्लीनिक कि तरह बाहर बारी का इंतज़ार करने जैसे बैठना होगा। ज़रूरी जो है वरना झूठा लांछन और फिर केस, बेल, जेल ये सब कोन झेलेगा।

लेकिन अनुमति मिल भर जाना ही क्रिया सम्पन्न नहीं करवा देगा । कुछ अखंड आपदाओं की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। जैसे इंवर्टर न होने पर बिजली जाने से रिकॉर्डिंग न हो पाना । आवेग के क्षणो मे बिस्तर से गिरकर पलंग के नीचे पहुँच जाने से कैमरे की हद से बाहर हो जाना। रिकॉर्डिंग डिवाइस ही करप्ट हो जाना इत्यादि। परेशानी ये है की ये समय रहते पता चले तो ठीक अन्यथा पंछी उड़ जाने के उपरांत “Benefit of Doubt” कोन लेगा इस पर तो कानूनी बवाल मच जाएगा । हर केस अंत तक सूप्रीम कोर्ट तक जाएगा।  

अब इस पूरे क्रम मे पति पत्नी निश्चित ही विधिक ज्ञान मे सक्षम होंगे । अधिवक्ताओं की अधिक आवश्यकता पड़ेगी, नए कॉलेज खोले जाएंगे विधि शिक्षा हेतु। शायद 10 के  बाद ही ये एक अनिवार्य विषय के रूप मे पढ़ाया जाने लगे। चिंता सरकार की निश्चित बढ़ेगी क्योकि वर्तमान मे मुकदमो कि लंबित परिस्थिति को देखते हुये 30 से 40 करोड़ लोगों के आवेदन को निपटना कठिन होगा। और मान भी लिया जाए कि हर आदमी ये प्रक्रिया एक बार ही करता है तब भी कितना कठिन है। और अगर ये  क्रिया का आवेदन बार बार किया गया तो ? मान लो सरकार ऐसी अनुमति जीवन काल मे सिर्फ 2 या 3 या 10 बार देने का निश्चय जन हित मे कर भी लेती है तब भी 30 करोड़ गुना 10 बार याने इतनी सारे आवेदनों का निपटान करना होगा । मुझे इसका सोल्यूशंस यह मिला कि घरेलू हिंसा के “प्रोटेक्शन ऑफिसर” कि तरह एक नया सरकारी पद बना कर एक reproduction officer” नियुक्त कर दिया जाएगा और उसको अर्ध न्यायिक शक्तियाँ दे कर ये भार पुलिस और कोर्ट के कम कर दिया जाएगा। वरना इतने इंतज़ार मे तो इच्छा और उम्र दोनों खतम हो जाएगी।

ऐसा बिलकुल मत सोचिएगा कि आप इस प्रक्रिया से बचने के लिए आपस मे एक दूसरे पर विश्वास करके बिना लाइसेंस के ड्राइविंग कर लेंगे, कब आप गाड़ी के साथ एक्सिडेंट को प्राप्त हो जाए कोई नहीं कह सकता। वो गाना याद है न ऋषि कपूर टीना मुनीम पर फिल्माया “तू 16 बरस की, मै 17 बरस का, मिल गए नैना...कुछ हो गया तो फिर न कहना”! मूड (mood) एक बहुत ही बुरा शब्द है, कई संदर्भ मे, कई जगह अपना अर्थ बदल लेता है, लग जाएगा आरोप मैरिटल रेप का। चलो अब ये भी सोच लिया जाए कि आरोप लग गया तब क्या? अब साबित कैसे होगा? साबित करना क्या है?।  कोई सुनने वाला तो होगा नहीं पति की। दहेज हत्या और अत्महत्या तथा रेप कि मामलो की  तरह की सुनवाई का प्रावधान होना इसमे निश्चित है। “Guilty until proven innocent” ही होना है पूरे ट्राइल मे। मान लो फोरेंसिक रिपोर्ट मे कुछ आये या नहीं आये, यहाँ पर रेप केस जैसा फायदा मिलना भी नहीं बनता। बंद कमरे कि गवाही कौन देगा? पत्नी के शरीर पर मौजूद घाव आपके प्रेम के प्रतीक न होकर हिंसा की गवाही ज़रूर देंगे। बस बन गए आप मुजरिम प्यार के ।  

पर मुझे इस पूरे कानून के आने मे एक बहुत बड़ा फायदा पतियों के लिए आता दिख रहा है कि भारतीय पुरुषों का विवाह माध्यम से जो आर्थिक, मानसिक, शारीरिक, पारिवारिक और सामाजिक-व्यावहारिक शोषण होता है उसको भारत मे पुरुष घरेलू हिंसा की प्रकृति मे नहीं देखा जाता है, इसलिए बाकी झूठे मुकदमो मे भले ही फंस कर वो लड़ता रहेगा, पर कम से कम एक सुख तो वह बीवी से शांति से प्राप्त कर ही सकेगा। कोई बड़ी बात नहीं कि मुकदमे बाज़ी के दौरान भी पति न्यायालय की  देख रेख मे ऐसी मांग कर सुख प्राप्त कर सके। यह मांग का हक पत्नी पर भी उतना ही लागू होगा। अगर कोर्ट पत्नी की ना नुकर पर अनुमति देने से मना करती है, तब पूरे नए कानून पर ही संवैधानिक संकट उत्पन्न हो जाएगा, जो फॅमिली कोर्ट कभी नहीं चाहती।     

पर एक और बात, कानूनी आदेश या अनुमति के अभाव का पालन, और इंतज़ार दिमाग कर सकता है, शरीर मे मौजूद हारमोन कि ज़िम्मेदारी कोई नहीं ले सकता। अनुमति मिलने मे देरी होने पर; या आपसी सहमति पत्र पर राजीनामा लिखवाकर और कोई ऊंच नीच को नज़रअंदाज़ किए जाने की बात लिखवाकर; और फिर क्रिया उपरांत फिर उसकी पुलिस को पत्नी की सलामती की रिपोर्ट देने; और क्लीन चिट मिलने के उपरांत पुनः प्रक्रिया दोहरने मे होने वाली देर एक चिंता का विषय है।  इसका परिणाम ये होगा कि शहर की हर गली मोहल्ले मे आलिंगन करते स्त्री पुरुष दिखाई देंगे। नगर निगम को शेड और “बैठने की उत्तम व्यवस्था” करनी होगी। अब लग रहा की देश की न्यायव्यवस्था को सराहनीय दूरदर्शिता के लिए धन्यवाद दिया जाए, शायद इसलिए संविधान पीठ ने जारता (adultery) को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है। अब ये अनैतिक होते हुये सिर्फ तलाक लेने भर का आधार रह गया है। कितना अच्छा है मैराइटल रेप का केस न झेलना हो तो पैसा फेंको, लालचियों की जेब भरो, ऐलिमनी (alimony) दो और डाइवोर्स का सिविल केस करके मुक्ति पाओ। बस आपकी पत्नी आपके अलावा किसी और मे इंटेरेस्टेड होनी चाहिए। वरना आप एक एटीएम मशीन बन जाएंगे। वैसे हारमोन बड़ी ही ताकतवर चीज़ है, अकेले रहने नहीं देते किसी को। नए कानून के आने के बाद सब खुला होगा इसलिए पति को प्रूफ इकट्ठा करने इत्यादि की भी झंझट नहीं होगी। आसान लग रहा ये सब तो बहुत, सरल और शांतिप्रिय, सतयुग मे वैसे भी सब कुछ बहुत शांतिपरक और सुव्यवस्थित ही था। इस मे कोई विवाद नहीं दिखता।  

विवाद तो सिर्फ टीवी पर होते दिखते, कितनी ही डिबेटों, परिचर्चाओं मे महिलावदी, पुरुषवादी विचारधारा के नेता, अभिनेताओं के बीच, पर वहाँ सिवाए हु-हल्ला करने और चैनल के एंकर की दबिश के बीच सुनाई देती कुछ घिसी पिटी लाइनों के, कुछ भी बुद्धि और न्याय परक सुनने को नहीं मिलता। जैसे कुछ दिनो पहले एक बहस मे एक बड़ा मज़ेदार मुद्दा उठा कि बिस्तर मे जबर्दस्ती कौन करता है? अधिकतर थोपे हुये उत्तरों मे से मुख्य ये निकाल के आया:

“ज़बरदस्ती पति ही करता है”, “इस बात का क्या सबूत है?”, तो कई महिलावादियों का उत्तर था कि “अदालत तय करेगी”, फिर पूछा गया कि “आप पूरा बेडरूम कोर्ट मे ले जाएंगी”?  तो वो  कुटिलता से मुस्कुरा दी।  अब मुस्कुराहट बड़ी कि कुटिल और संभावनाओ से भरी चीज़ है, कोई क्या मतलब निकाले? अगर पति का मन नहीं होता और पत्नी जबर्दस्ती करे, उस मे मज़ेदार किस्से तब शुरू होते जब महिला कि कम्प्लेंट पर पुलिस वाले कहते हैं कि जब पत्नी चाह रही थी तो कर लेना था, नामर्द है क्या? समाज को लगता है कि पुरुष एक बैल है जिसका काम है, मेहनत कर के पैसे कमाना और सेक्स करना। अरे, लेकिन बैल तो कुछ कर ही नहीं सकता! सांड व बैल दोनो ही नर गोवंश हैं । आपको पता होगा गांवों मे अधिकतर नरों को उनके अंडकोश खराब कर बधिया कर दिया जाता है। यह कार्य संभवतः उनके पूर्ण वयस्क हो जाने से कुछ समय पूर्व किया जाता है। इससे उनका आक्रामक स्वभाव समाप्त हो जाता है। उसके बाद उन्हे बैलगाड़ी व हल खींचने हेतु प्रशिक्षित किया जाता है, ऐसा करने पर वे नर "बैल" कहलाते हैं। जब कि "सांड" वे अच्छे व स्वस्थ नर होते हैं जिन्हे प्रजनन कार्य हेतु सामान्य रूप से वयस्क होने दिया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों मे वे स्वतंत्रता से सारे क्षेत्र मे विचरण करते हैं, व गायों से संभोग कर गर्भवती बनाते हैं। इस कार्य मे थोडा धार्मिकता का पुट देने हेतु उनके शरीर पर त्रिशूल व ऊँ का चिन्ह अंकित कर दिया जाता है ताकि उन्हे कोई नुकसान न पहुंचावे। सांड के कंधे पर की गूमड काफी बडी होती है जब कि बैल की काफी छोटी। बस अब इसे ऐसे समझें कि नया कानून पति को यही बैल बनाने की प्रक्रिया होगा, कुछ अच्छे पुरुषों का उपयोग “तृप्ति” हेतु किया जाएगा। पति का छोटा स्वाभिमान अर्थात गूमड की तरह छोटा होगा दूसरे कुछ पुरुषों की अपेक्षा। धार्मिक पुट के लिए शादी का ठप्पा लगाया जाएगा, और पौरुष का नाश कर एटीएम मशीन से तेल निकाला जाता रहेगा। ये कानूनी-नपुन्सिकीकरण का अत्यंत जीवंत उदाहरण होगा।
नीचे के चित्रों मे फर्क देखिये। कौन ज्यादा कॉन्फिडेंट दिख रहा?:

 सींग भले ही पैने पर सब बेकार!

मीडिया, सिनेमा इत्यादि ने भी पुरुष की यही छवि बनायीं है कि वो हर दम तैयार है, जब चाहे उससे सेक्स करवा लो। ज़्यादातर सेक्स क्लिनिक भी इसी बात को आधार बना कर लूट मचाते हैं कि आदमी तो हमेशा तैयार होना ही चाहिए। जिनसे ना हो पाया वो खुद को नपुंसक मान बैठते हैं। पुरुष के लिए consent जैसी कोई चीज़ नहीं होती। एक और प्रश्न है कि क्या “Cohesive” सेक्स यानी सेक्स के लिए साथी को मान मनुहार से मनाना भी रेप माना जायेगा? जब स्त्रियां DV एक्ट और 498A का इतना बेहतरीन इस्तेमाल कर रही हैं तो मैरिटल रेप तो मालामाल वीकली बन ही जाना है। सतयुग मे नारी पूजनीय थी और उस के हित मे पूरी सृष्टी रहती थी।

एक और मज़ेदार बात भी समझना पड़ेगी, अगर मान लो पति पत्नी दोनों अपने संवैधानिक हक के प्रति सजग हैं, और दोनों के बीच कोई जबर्दस्ती खींच तान नहीं होती, पर ऐसे मे कभी किस का मूड नहीं, कभी किसी का और ऐसे महीनो निकल जाएंगे तब? अब अगर ऐसे मे पत्नी का मूड कहीं और है, और हमेशा ही नहीं होता इस “बैल-नुमा” पति के साथ तब क्या? पति का निरंतर आग्रह भी घरेलू हिंसा की श्रेणी मे आ जाएगा। इस तरह पति के पास बच्चा न होना ही एक मात्र साक्ष्य रह जाएगा। बस ऐसे ही मांगते, गिड़गिड़ाते हुये चलेगी पति की ज़िंदगी। वो जय संतोषी माता पिक्चर मे था एक डाइलाँग, “भूसे की रोटी दो, नारियल के टुकड़े मे पानी दो...” कुछ ऐसा ही होगा।

अब ये कहना गलत नहीं की वैवाहिक बलात्कार का कानून लाने और सख्त criminal offence की तरह सज़ा के प्रावधान से देश की जनसंख्या मे कमी आएगी, सेक्स कम होगा। ट्रिपल तलाक कानून की तरह ही इसको भी कड़ाई से लाना चाहिए । वहाँ तो सरकार की मजबूरी मंशा कुछ और थी, पर यहाँ तो सतयुग का सवाल है। इस कानून से अन्य काम पूर्ति के माध्यम बढ़ेंगे, वामपंथी, पश्चिमी और उदार मासिकता आएगी, देश मे हर तरह से क्रांति आएगी और समृद्धि बढ़ेगी। पुरुष डर के ही सही, दूसरा मार्ग अपनाएँगे। क्या? हिन्दी फिल्मों ने सब रास्ते पहले ही दिखा दिये हैं, वो पहचान फिल्म का प्रचलित गाना है, “आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ .....” भला हो संवेधानिक पीठ का जिसने पुरुषों के आने वाले दर्द को समझते हुये समलेंगिकों के सम्बन्धों को जायज़ कर दिया। एक साथ 2-2 बड़े फैसले पास-पास आए हुये देखकर लगता है कि संवैधानिक पीठ का आगे वैवाहिक बलात्कार को जायज़ करने की दूर की सोच से ही ये उपजे हैं। भविष्य के गर्भ मे से जल्दी ही एक और फैसला आ सकता है। न्याय व्यवस्था मे सब बराबर हैं, कुछ समान लोग अधिक समान हैं बस, बाकी कुछ उपयोग का सामान हैं। जो भी हो संवैधानिक शुद्धता बनी रहनी चाहिए। तयार रहो नरों, पुरुषों, पतियों, बैलों......
  
पतियों के लिए विरोध करने का सोचना भी गलत अन्यथा और बुरा हो सकता। बैल तो फिर भी एक एक पूजनीय प्राणी है, कुछ और बना दिया तो? याद है न 1975 के आपातकाल के दौरान जब नागरिक स्वतंत्रता को निलंबित कर दिया गया था, संजय गांधी, पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के बेटे ने शुरू किया था "भीषण अभियान", जब गरीब पुरुषों की नसबंदी, गाँवों में पुलिस की घेराबंदी और वस्तुतः पुरुषों को शल्य चिकित्सा के लिए घसीटने की खबरें थीं। कुछ ऐसा नया हो गया तब क्या?


मुझे इस विषय पर लिखना ही था, क्योकि हर वो चीज़ जो पारिवारिक न्यायालय और परिवार से संबंध रखते हुये समाज, कोर्ट और पुलिस कि भूमिका से जुड़ी हो मुझे आकर्षित कर ही देती है, और फिर ऐसा संभावनाओं से भरा विषय जो भारत को पुन: गौरवान्वित होने का मौका दे सकता तो कहना ही क्या। तो भाई ऐसे होगी सतयुग की वापसी-- वीर्य रक्षण, स्त्री सम्मान, स्त्री सुरक्षा, सहवास-प्रवास, धैर्य धारण मे बढ़ोतरी, विवाह का न्यायिकरण, कानूनी समझ की आवश्यकता, नरो का पुरुषिकरण, अर्थव्यवस्था का विकास, जनसंख्या नियंत्रण, और शादी जैसी आम हो चुकी चीज़ पर फूँक फूँक कर कदम रखने कि बाध्यता, एवं कई अन्य बेनेफिट्स जिसमे “friends with benefits” मुख्य है। पूरे देश मे “मित्रता” की भावना मे इजाफा होगा । ये होगी सही मौलिकता और सतयुग कि वापसी?




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Thursday, 9 January 2020

वैवाहिक बलात्कार कानून द्वारा सतयुग की वापसी - I


लेखक: डॉ पुनीत अग्रवाल

PhotoSource:http://tehelkahindi.com/
वर्ष 2019 बड़ा ही निराशाजनक जाता हुआ प्रतीत हुआ है क्योकि इसी साल माननीय उच्चतम न्यायालय ने वैवाहिक बलात्कार से जुड़ी एक जन हित याचिका पर सुनवाई से इंकार करते हुये एक सम्पूर्ण पत्नी परक व्यवस्था को जन्म लेने से पूर्व ही उसका पटाक्षेप कर दिया। कुछ लोग बड़े खुश थे इस निर्णय से। विचित्र बात है, क्यो खुश थे? क्या “बलात्” शब्द इनलोगों को बहुत  प्रिय है? या ये अति कामी हैं? या कह लो इनको इतनी समझ ही नहीं कि किसने क्या मांगा, और किसने क्या देने से मना कर दिया। लोग तो बस "अपने पास बीवी है" इसी विचार से खुश हैं। लोगों को ये समझ ही नहीं आया  कि ये एक अच्छा मौका था सतयुग लाने का, समाज को उन्नत बनाने का, देश को वापस सोने की चिड़िया, भारत को विश्वगुरु बनाने का और जनसंख्या विस्फोट पर काबू पाने का, सब गुड गोबर हो गया। आगे बात से पहले ये बता दें कि भारत मे अभी वैवाहिक बलात्कार को परिभाषित नहीं किया गया है, और इसके लिए कोई कानून नहीं है। महिला अधिकार कार्यकर्ता इसे अपराध की श्रेणी मे लाने के लिए कोर्ट समेत कई मंचों पर लड़ाई लड़ रही हैं ।

वैवाहिक बलात्कार कानून (Marital Rape Law) से सतयुग की वापसी और जनसंख्या नियंत्रण का विचार ही अपने आप मे विलक्षण और अति उत्तम है। भले ही केंद्र सरकार इसके इसके पक्ष मे न हो (पर क्यो नहीं है वो तो एक अति संवेदनशील सरकार है इन मामलो मे?) लेकिन मुझे इस बात से आश्चर्य है की आखिर ऐसा क्यो नहीं हुआ, क्या है जो अटक रहा, खटक रहा है? या फिर सरकार का पिच्छला सब कुछ दिखावा था और यही असली चेहरा है? मुझे लगता कि अगर सतयुग कि वापसी हो गयी तो सरकार को भगवाकरण का ताना झेलना पड़ेगा, उसी से परहेज है ये सब। पर खारिज हो गया।  खैर राजनीति नहीं लॉं की बात की जाये फिलहाल। ये मुद्दा कितना महीन और नवीन है, फिर भी महत्वहीन है। भारत की सूप्रीम कोर्ट और कई उच्च न्यायालयों  मे इस पर कई हृदय विदारक विचार दिये गए हैं । पर सब महत्वहीन रहा। कोर्ट ने सुना हो न सुना हो भारतीय पतियों को नींद मे, सपनों मे,महिला संगठनो की उठायी आवाज गूँजती होगी:

किसी से शादी करने से आपको उसके शरीर पर संपत्ति का अधिकार नहीं मिलेगा। जब भी आप अपने पार्टनर के साथ नहीं चाहते तब भी आपको किसी से संभोग, सेक्स करने का अधिकार नहीं है। शादी आपको जब मन चाहे सेक्स करने के लिए एक मुफ्त पास नहीं देती है। सेक्स कोई बाध्यता नहीं है। यह एक ऐसा कार्य है जिसके लिए दोनों पक्षों की सहमति आवश्यक है। आपकी पत्नी की ‘ना मतलब ना होता है’। 
पतियों मे चारों तरफ भय और असमंजस का माहौल बनता दिख रहा होगा, रात्रि तो रात्रि, दिवा स्वप्न भी आते होंगे। विवाहित जोड़े के बीच संयुग्मक अधिकार (conjugal rights) हैं, परंतु ये अधिकार उचित व्यवहार की सीमा के भीतर मौजूद हैं, ये बात भारतीय पुरुषों को समझ आने के लिए हिंदुस्तानी बुद्धि कम है। हिंदुस्तान की गर्मी के मौसम मे "गुनगुना विदेशी न्यायशास्त्र" बेअसर है, विदेशों मे जो होता वो यहाँ भी हो ये मुश्किल सी बात है। पर सुनना तो पड़ेगा, सुन्नी हो या शिया, सरकार हो या कोर्ट, आवाज़ नारी की है और काफी भारी है, दर्द भरी और एक "विशेष औचित्य" वाली है। सुनेंगे तभी तो सामाजिक न्याए होगा, सही आचरण होगा। किस आधार पर, कैसे, कितना, और कितने प्रतिशत पता नहीं, पर होगा। कमरो के अंधेरे मे से ही दाम्पत्य का पौधा बिना रोशनी के सींचा और ऊंचा खड़ा किया जाना होगा। 

भारत समेत दुनिया के कई देशों में वैवाहिक बलात्कार पर कोई कानून नहीं हैं, तो वहीं बहुत से देशों ने इसे अपराध की श्रेणी में रखा है। भले ही भारत की संस्कृति अलग है तो क्या, बच्चे पैदा करने मे तो सबसे आगे हैं, इसलिए इस मायेने भारत मे इसके होने का हक़ तो बनता है। इस गलती हो गयी।  इस  मामले को शशि थरूरजी की भारी भरकम अङ्ग्रेज़ी भाषा और संकृति के साथ एक बोल्ड सोच के साथ 
उठवाया जाना  चाहिए था क्यो की वे ही "महिलाओं के यौन, प्रजनन और मासिक धर्म अधिकार" का प्राइवेट बिल सदन मे लाये थे। अब कितना भारतीयो को समझ आया होगा, पता नहीं । गहरी विचारधारा भारत मे अपने आपने मे मे एक चुनौती है, जो चीज़ विदेश से पैक होकर महंगी न आए तब तक वो अमल करने योग्य नहीं है। गड्ढा हो या विचार भारत मे गहरा नहीं होना चाहिए। और खुद के द्वारा खोदा गया तो बिलकुल ही नहीं। बने बनाए गड्डे मंगवाना ही सही समझा जाता है गिरने के लिए । कीमत कितनी भी चुकनी पड़े सब तैयार हैं।

भारत मे वैवाहिक बलात्कार पर वर्तमान परिपेक्ष मे सिर्फ दो ही कानून हैं इस सं
दर्भ मे। पहला आदमी के द्वारा न्यायिक पृथककरण या अन्य स्थिति के दौरान अलग रह रही अपनी पत्नी के साथ उसकी सहमति के बिना संभोग करने पर भारतीय दंड विधान की धारा 376B के अंतर्गत लगभग 2 साल से 7 साल तक की जेल की सजा और आर्थिक दंड के साथ ये एक दंडनीय अपराध है। दूसरा महिला अपने पति के खिलाफ अप्राकृतिक संबंध बनाने के लिए भारतीय दंड विधान की धारा 377 के अंतर्गत मामला दर्ज करा सकती है। अतः कमी तो दिख रही है। ऐसा कानून न होना सम्पूर्ण पत्नी जाति के साथ अनयाय है। आवाज़ शहर की औरतें उठा रही हो लेकिन गाँव की की महिलाएं इतनी ज्यादा पीड़ित हैं की उनको तो स्वर्ग ही मिल जाएगा। शहर की पत्नियाँ भी अब नए नए स्वतन्त्र्ता के माध्यम इस कानून का सहारा लेकर ढूंढ पाएँगी। पुरुष भी इसका सहारा लेकर कोई उपाए ढूंढ ही लेगा, बद्दतर घर मे खाना नहीं मिलेगा तो बाहर खा लेगा।

एक तरह की स्त्रीजनित सामाजिक राष्ट्रीय आपदा समझ कर, वैवाहिक बलात्कार के कानून को पता नहीं क्यो सरकार लंबित किए जा रही है? आदरणीय सूप्रीम कोर्ट भी इस पर (377) समलेंगिगता और (494) जारता की तरह जुड़ीशियल ऐक्टिविस्म (Judicial Activism)और संवेदनशीलता नहीं
दिखा रही है? यह एक सोचनीए विषय है। धर्म, आचरण, हिन्दुत्व, विकास (मिलता जुलता ही तो है सहवास से) की बात करने वाली सरकार को ये उपाए कैसे नहीं लुभा रहा ये सोच कर ही महिला कार्यकर्ता अवसाद मे हैं। इस से एक तीर और कई शिकार संभव हैं कि जैसे भारत मे मुसलमानो और जैनो की बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण इत्यादि, इस कानून से से लोग सतयुग की तरफ लौटेंगे।

ये सुनने ,मे अटपटा सा लग सकता पर प्राचीन हिन्दू और सनातन संस्कृति मे सेक्स और सहवास मात्र संतान उत्पत्ति का एक साधन मात्र था। अपवाद स्वरूप अब ईसा से दूसरी शताब्दी मे लिखा ग्रंथ कामसूत्र बना भी एक वैश्यलाय मे घटित घटनाओ
के ऊपर था, वात्स्यायन से पूछना पड़ेगा क्या सोच कर कामसूत्र की रचना की थी और नवी-दस्वी शताब्दी के राजपूत चंदेलों ने क्यो ऐसे मंदिर खजुराहो मे क्यो बनवाए? तब व्यभिचार और अति कामुकता अच्छी संस्कृति का अंग नहीं कहा जाता था। “अंग से अंग लगाना सजन हमे ऐसे रंग लगाना " लोग पहले भी गाते होंगे लेकिन तब “वीर्य रक्षण” संस्कृति का बोल बाला था। ब्रहमचर्य चरम पर था। नए जमाने की भाषा मे NoFAP और Celibacy कहते हैं। पहले ब्रहमचर्य के द्वारा ही इतनी सृजनात्मकता, ओज और संस्कृति का उत्थान शिखर को छू गया था। आज तो ये भ्रम-चर लगता है। आज “चरम” का अर्थ ही अलग है। बिना "orgasm" के क्या जी पाएंगे लोग? क्या स्त्री पुरुष इसके लिए तैयार हैं? चलो पुरुषों को तो सरकार का आदेश मानने को मजबूर होकर मन मसोच कर रहना पड़ा भी तो अन्य महिलावदी कानूनों की मार के साथ ये भी सह लेगा, पर पत्नी?
स्त्री त्याग की मूर्ति है और कोई बड़ी बात नहीं ये भी संभव हो, लगता है। जब राम मंदिर बन रहा तो, मन मंदिर मे बदलाव लाना क्या मुश्किल। और शरीर भी तो एक मंदिर ही है। कई मंदिर ऐसे हैं जिनमे एक भी श्रद्धहालु नहीं आते पर उस से उसकी गरिमा कम तो नहीं हो जाती। कोई संशय नहीं कि इस से भारत मे अब जल्दी सतयुग की वापसी होगी क्यो कि  त्रेता, द्वापर युग के तो भरपूर सेक्स और आनंद प्रमोद के किस्से किताबों मे मिल जाते हैं, वो कोई मॉडल नहीं। और ये तो वैसे भी कलयुग है। कलयुग मे नगरवधू सभ्यता (courtesan) भी यहीं थी। वो हिंदुस्तान था आज भारत है। पत्नियों का सतयुग की वापसी और मांग करना एक अत्यंत ही सरहनीय और परिश्रम और त्याग से भरा कदम है। अगर मेरी बात मे कोई संशय लगता है तो बहुत मटिरियल है गूगल पर पढ सकते हैं इस पर, शास्त्रो की क्या बात करें उसपर अलग एक बड़ी पोस्ट बनेगी। मोटा मोटा ये समझिए की विवेकानंद से लेकर कई बड़ी हस्तियो ने इस पर बहुत विचार कर रखा हुआ है और मार्ग भी दिखाया हुआ है। अगर कोई पुस्तक पढना हो तो एक मज़ेदार और ज्ञानवर्धक पुस्तक है: 1942 मे लिखी स्वामी शिवानंद की "ब्रहमचर्य ही जीवन है और वीर्य नाश ही मृत्यु"। फ्री है ऑनलाइन मिल जाती गूगल पर पढ़ सकते हैं । 

हाँ कुछ लोगों के मन मे एक विचार आ रहा होगा कुछ विशेष लोगों का उदाहरण को लेकर, लेकिन मुझे उनलोगों से कोई मतलब नहीं, न उनके बारे मे बात करना, खास कर उन विदेशी गोरो की जिसको देख देख भारतीय काले मन के लोग जल्दी आकर्षित हो जाते हैं -- जो ये कहते की हमारे देश मे तो हम रोज़ दंपत्ती लोग भरपूर सेक्स करते, हम कौनसा दुबले पतले हो रहे, या मृत्यु को प्राप्त हो रहे या या हमारे यहाँ ज्ञान विज्ञान की कमी है। तो मेरा यही कहना है कि उनकी रक्षा उनके देश मे मौजूद वैवाहिक बलात्कार का कानून करता है, भारत देश मे यह नहीं है। जब तक नयी थियोरी नहीं आती पुरानी ही चलेगी। भारत मे ये कानून क्या-क्या नया ड्रामा लाएगा ये भी एक मज़ेदार विषय है। 

(to be continued....)


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