भाग1 से निरंतर ...
अधिकतर भारतीय लड़को की वर्तमान सोच सिर्फ “ पीना “ और
“ ठोकना”,
इस से आगे सिर्फ अपने कैरियर को लेकर ही कुछ हद तक देखी
जा सकती है । इसमे डूबे हुये इनको पता ही नहीं चलता ये सोच कैसे अपना रूप बदल लेती
है- ग़म पीने और अदालत के दरवाजे ठोकने मे तब्दील हो जाती है। कॉलेज के ब्रेकप और दारू
के नशे मे की गयी शांति-भंग या कोर्ट के कटघरे मे खड़े अनमने मन से जज की डांट पर अपनी शादी को बचाने की हामी भरता आदमी
हो - सभी मे कमी पुरुष मे ही होती है। फर्क किसी भी सूरत मे कोई नहीं है, वरना
50 प्रतिशत जनसंख्या मे से एक अच्छी लड़की का न मिलना दैविक प्रकोप है, खुदा
के कहर से कम कुछ नहीं है।
पुराने पापो का फल इसी जन्म मे मिलता है। इतना सब सहकर
आप समझ जाते हैं की जीवन अब आपकी ठुकाई कर रहा होता है। अब आपको समझ आता है की ये “ठुकाई”
कितना जादुई टर्म है । ये सब जगह आगे कैसे आपके साथ चलता है। गर्लफ्रेंड के भाई द्वारा, बिज़नस
के,
जॉब के दुश्मनों द्वारा आपकी ठुकाई हो। इसी के चलते ये
फिर सामने आता है जब माता पिता के ठोकने पीटने पर आप शादी के लिए हामी भर देते हैं।
शादी के बाद छती ठोक- ठोकर कर कहते हैं शादी का लड्डू नहीं खाना था। अब समझ आता है उस शब्द का असली मतलब, उसकी
सामाजिक ताकत । जैसी करनी वैसी भरनी का मतलब । और जब अपनी कानून बीवी आपको लीगली ठुकवाने
के लिए कोर्ट लेकर पहुँचती है तब प्यार का पंचनमा समझ आता है । वहाँ आप एक कमियो से
भरे जीव ,
प्राणी की भांति खड़े कर दिये जाते हैं । आखिर चुनी हुयी
सरकार,
मनोविज्ञानी, समाजशास्त्री, कानून
,
महिला संगठन, न्यूज़
चैनल,
और आपके आस पड़ोस वाले लोग गलत थोड़े ही बोलेंगे।
अब तो ये लगने ही लगता है की इतना कुछ हुआ सब बोल रहे 50 प्रतिशत पुरुषों मे
से 25 प्रतिशत पुरुष ,
कुल मिलकर 75 प्रतिशत लोग बोल रहे हैं तो कमी तो पति
रूपी पुरुष मे ही है । वो ही असुर है और एक राक्षस, खोखले
व्यक्ति के साथ बीवी नहीं रह सकती है । इसलिए उसको वो सब करना चाहिए जिस से बीवी आराम से मुक्ति पा सके और एक पति रहित
आरामदायक जीवन अपनी मर्ज़ी से जी सके। क्या गलत है ये उसका हक है। मुक्ति पाना सबका
हक़ है। और पति भी तो अब नयी “ठुकाई” के लिए फ्री है । मुक्ति ही जीवन का सार है।
मेरी बात के अगर
व्यंग को सिर्फ हंसकर छोड़ देंगे तो फिर पतियों की ऐसी ही मुक्ति होगी। एक स्त्री द्वारा
पैदा किया हुआ जीव इतनी कमियो से भरा कैसे हो सकता है ? कमी
कितनी भी हो लड़को मे एक बात अच्छी होती है - दोस्ती। भारतिए पुरुषो को मंथन सोचने और
जुडने की अवश्यकता है। संवाद और पढ़ने और इस
पर लिखने की आवश्यकता है । अपने आस पड़ोस मे घट रही घटनाओ को गौर से देखने , सचेत
रहने और और चिंतन करके भविष्य मे शादी जैसे फैसले मे कानून सलाह से ही आगे बढ्ने और सावधानियाँ लेकर चलने की आवश्यकता है। वार्तालाप
करने,
एक दूसरे से जुडने से क्रियाशीलता का जनम होता है ।
वास्तविकता मे पुरुषो मे कमी है , कमी
है एक गंभीर सोच और दूसरों के प्रति सहानुभूति न होने की । साथ जो हो रहा उसको होने देने की और “मेरे साथ बुरा
नहीं होगा “ या “जब होगा तब देखा जाएगा “ वाले एट्टीट्यूड की। इसी से बेवक्त ठुकाई
होने की नौबत आ जाती है । अभी से जगिये। शादी भी एक जॉब इंटरव्यू ही है, कॉलेज
की डिग्री के साथ साथ कंपनी के रुल्स, खतरे और बॉस के बारे मे जानना
और अगर नौकरी से निकाला जाए तो अपने हितो की रक्षा कैसे करना ये आपको कांट्रैक्ट साइन
करने से पहले मालूम होना ज़रूरी है। समय है की स्कूल कालेज मे अब शादी संबंधी कानूनों
की जानकारी दी जानी चहिए ताकि पुरुष अपनी तथा कथित कमियो पर इज्ज़त और सुरक्षा की चादर ढँक सके । इसके लिए इस विषय से जुड़ा कोर्स करना अब ज़रूरी
है और सही ज्ञान लेना उतना ही ज़रूरी जितना 7 फेरे लेना या खुतबा पढ़ा जाना । मर्ज़ी आपकी
है।
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