श्रीमान दीपक मिश्रा जी एवं अन्य
भारतीय समाज को और अधिक मानवीय बनाने की दिशा में आपका शानदार प्रयास मीडिया गेम में कहीं खो गया है। नहीं, मीडिया परीक्षण मे नहीं, इस बार यह 495-पेज का फैसला मीडिया के बुद्धिमान प्रतिपादन द्वारा लिंग तटस्थता (gender neutrality ) के संकट से जूझ रहा है ।
जैसे ही पता चला की ऐतिहासिक फैसला आ चुका है मैने गूगल पर 377 चिपका पढ़नाचाहा की क्या फैसला आया । जैसे ही न्यूज़ का फ़िल्टर डाला एक नयी दुनिया मेरे सामने आगाई। LGBTQ कम्यूनिटी के साथ हुये न्याए-अन्याये की अपेक्षा से कोई नयी न्यूज़ मिलने की आशा थी जो एक अजीब सी असमंजस मे बदल गयी।
मुझे लगा क्या भारत के 5 गुणी एवं विचारशील न्यायाधीशों ने एक तरफा फैसला दे पुरुषों मात्र पर एहसान करा है और महिलाओ की उपेक्षा कर दी । ऐसा सोचने का कारण था की गूगल ने जितनी न्यूज़ मुझे दिखाई उसमे सिर्फ कुछ ऐसा पढ़ने को मिला :
‘Gay sex is not a crime,’ says Supreme Court in historic judgement
Section 377 refers to 'unnatural offences' and says whoever voluntarily has gay sex shall be punished by up to 10 years in jail under the 1861 law.
ये कुछ प्रमुख पोर्टल्स हैं जो गूगल मे सबसे ऊपर आते हैं और जाने माने हैं । मैंने सिर्फ कुछ पोर्टल्स से न्यूज़ हैड्लाइन्स को यहाँ लिखा है, ऐसे अनगिनत हैं । और जो अन्य थोड़े कमतर हैं उन्होने ने दया कर हैड्लाइन्स मे न लिख कर लेख मे अंदर ये कृत्य बखूबी करा है।
इन सभी को पढ़ने के बाद मैंने सोचा क्या अंग्रेज़ जो कानून बना कर गए थे वो भी क्या सिर्फ पुरुषों पर कुपित थे? इसलिए मुझे अच्छी ख़ासी मेहनत कर IPC खोल भारतिय दंड संहिता के सेक्शन 377 को पढ़ना पड़ा परंतु संहिता मे तो मुझे कुछ भी ऐसा नहीं मिला जो ये सोचने पर मजबूर करे की अंग्रेज़ सिर्फ पुरुषों पर कुपित थे वहाँ तो कुछ ऐसा लिखा था --
"जो भी कोई किसी पुरुष, स्त्री या जीवजन्तु के साथ प्रकॄति की व्यवस्था के विरुद्ध स्वेच्छा पूर्वक संभोग करेगा तो उसे आजीवन कारावास या किसी एक अवधि के लिए कारावास जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है से दण्डित किया जाएगा और साथ ही वह आर्थिक दण्ड के लिए भी उत्तरदायी होगा।"
अब सवाल ये उठा की मीडिया को ये दैविक ज्ञान कहाँ से प्राप्त हुआ ? शायद पुरानी आदत है पुरुषों के प्रति पूर्वाग्रह के कारण विकृति से उनको नवाजने की । अब पुरुष तो सदा नवाजा गया है की वह कामी, अत्याचारी, स्त्री हंता है इसीलिए शायद सेक्स के मामले मे भी इस तरह का सम्बोधन लाज़मी है। रही सही कसर निर्णय आने से पहले रिलीस हुयी फिल्म "स्त्री " मे अमर कौशिक ने पूरी कर दी। मीडिया को लगता सारी प्रेरणा पुरुषों को निर्वस्त्र करने की यही से मिली होगी। वैसे कोई फरक नहीं पड़ता बस मुझे डर सिर्फ इस बात का है की इस तरह की न्यूज़ पढ़कर कहीं शबाना आज़मी जी, नन्दिता दास जी और दीपा मेहता जी को कहीं "आग " न लग जाए !
फिर मेरे मन मे आया की कहीं संविधान पीठ ने ही तो नहीं ऐसा कुछ लिख दिया, पर नहीं वहाँ भी निराशा हाथ लगी। मीडिया की दिव्य ज्ञान शक्ति का स्त्रोत वहाँ भी नहीं मिला! मेरा लेकिन काफी ज्ञानवर्धन तब तक हो चुका था। आपके ज्ञान वर्धन के लिए ये जाना ज़रूरी है की "गे सेक्स" शब्द का प्रयोग पूरे निर्णय मे मात्र एक बार अनुच्छेद 82 मे किया गया है । पर न्यूज़ पोर्टल्स पर पढ़ कर ऐसा लग रहा मानो ये सिर्फ पुरुषों के लिए ही निर्णय आया है और महिलाएँ इस संबंध मे कहीं कोई दखल नहीं रखती हैं। वैसे निर्णय मे 133 बार गे शब्द का इस्तेमाल हुआ है और मात्र 82 बार लेसबियन शब्द का प्रयोग हुआ ।
अब क्या संविधान पीठ के इस निर्णय को आधार बनाकर ये मान लिया जाये की भारत मे महिलाओं का इस तरफ रुझान पुरुषों से आधा है और इसलिए ही मीडिया ने सिर्फ गे सेक्स को प्राथमिकता दी? ये तो सरासर अन्याये है पुरुषों और महिलाओ दोनों के प्रति। मेरे हिसाब से ये शोध और अन्वेषण का विषय है और महिलाये पुरुषों से कंधे से कंधा मिलकर इसमे भी बराबरी ज़रूर करेंगी।
भारतीय समाज को और अधिक मानवीय बनाने की दिशा में आपका शानदार प्रयास मीडिया गेम में कहीं खो गया है। नहीं, मीडिया परीक्षण मे नहीं, इस बार यह 495-पेज का फैसला मीडिया के बुद्धिमान प्रतिपादन द्वारा लिंग तटस्थता (gender neutrality ) के संकट से जूझ रहा है ।
जैसे ही पता चला की ऐतिहासिक फैसला आ चुका है मैने गूगल पर 377 चिपका पढ़नाचाहा की क्या फैसला आया । जैसे ही न्यूज़ का फ़िल्टर डाला एक नयी दुनिया मेरे सामने आगाई। LGBTQ कम्यूनिटी के साथ हुये न्याए-अन्याये की अपेक्षा से कोई नयी न्यूज़ मिलने की आशा थी जो एक अजीब सी असमंजस मे बदल गयी।
मुझे लगा क्या भारत के 5 गुणी एवं विचारशील न्यायाधीशों ने एक तरफा फैसला दे पुरुषों मात्र पर एहसान करा है और महिलाओ की उपेक्षा कर दी । ऐसा सोचने का कारण था की गूगल ने जितनी न्यूज़ मुझे दिखाई उसमे सिर्फ कुछ ऐसा पढ़ने को मिला :
‘Gay sex is not a crime,’ says Supreme Court in historic judgement
Section 377 refers to 'unnatural offences' and says whoever voluntarily has gay sex shall be punished by up to 10 years in jail under the 1861 law.
India's Supreme Court rules gay sex is no longer a crime in historic Section 377 judgment
Section 377 verdict LIVE: SC decriminalises gay sex, LGBT community celebrates historic day
Section 377 verdict LIVE: SC decriminalises gay sex, LGBT community celebrates historic day
India court legalises gay sex in landmark ruling
In a landmark judgment, SC decriminalises Section 377, makes gay sex legal
In a landmark judgment, SC decriminalises Section 377, makes gay sex legal
ये कुछ प्रमुख पोर्टल्स हैं जो गूगल मे सबसे ऊपर आते हैं और जाने माने हैं । मैंने सिर्फ कुछ पोर्टल्स से न्यूज़ हैड्लाइन्स को यहाँ लिखा है, ऐसे अनगिनत हैं । और जो अन्य थोड़े कमतर हैं उन्होने ने दया कर हैड्लाइन्स मे न लिख कर लेख मे अंदर ये कृत्य बखूबी करा है।
इन सभी को पढ़ने के बाद मैंने सोचा क्या अंग्रेज़ जो कानून बना कर गए थे वो भी क्या सिर्फ पुरुषों पर कुपित थे? इसलिए मुझे अच्छी ख़ासी मेहनत कर IPC खोल भारतिय दंड संहिता के सेक्शन 377 को पढ़ना पड़ा परंतु संहिता मे तो मुझे कुछ भी ऐसा नहीं मिला जो ये सोचने पर मजबूर करे की अंग्रेज़ सिर्फ पुरुषों पर कुपित थे वहाँ तो कुछ ऐसा लिखा था --
अब सवाल ये उठा की मीडिया को ये दैविक ज्ञान कहाँ से प्राप्त हुआ ? शायद पुरानी आदत है पुरुषों के प्रति पूर्वाग्रह के कारण विकृति से उनको नवाजने की । अब पुरुष तो सदा नवाजा गया है की वह कामी, अत्याचारी, स्त्री हंता है इसीलिए शायद सेक्स के मामले मे भी इस तरह का सम्बोधन लाज़मी है। रही सही कसर निर्णय आने से पहले रिलीस हुयी फिल्म "स्त्री " मे अमर कौशिक ने पूरी कर दी। मीडिया को लगता सारी प्रेरणा पुरुषों को निर्वस्त्र करने की यही से मिली होगी। वैसे कोई फरक नहीं पड़ता बस मुझे डर सिर्फ इस बात का है की इस तरह की न्यूज़ पढ़कर कहीं शबाना आज़मी जी, नन्दिता दास जी और दीपा मेहता जी को कहीं "आग " न लग जाए !
फिर मेरे मन मे आया की कहीं संविधान पीठ ने ही तो नहीं ऐसा कुछ लिख दिया, पर नहीं वहाँ भी निराशा हाथ लगी। मीडिया की दिव्य ज्ञान शक्ति का स्त्रोत वहाँ भी नहीं मिला! मेरा लेकिन काफी ज्ञानवर्धन तब तक हो चुका था। आपके ज्ञान वर्धन के लिए ये जाना ज़रूरी है की "गे सेक्स" शब्द का प्रयोग पूरे निर्णय मे मात्र एक बार अनुच्छेद 82 मे किया गया है । पर न्यूज़ पोर्टल्स पर पढ़ कर ऐसा लग रहा मानो ये सिर्फ पुरुषों के लिए ही निर्णय आया है और महिलाएँ इस संबंध मे कहीं कोई दखल नहीं रखती हैं। वैसे निर्णय मे 133 बार गे शब्द का इस्तेमाल हुआ है और मात्र 82 बार लेसबियन शब्द का प्रयोग हुआ ।
अब क्या संविधान पीठ के इस निर्णय को आधार बनाकर ये मान लिया जाये की भारत मे महिलाओं का इस तरफ रुझान पुरुषों से आधा है और इसलिए ही मीडिया ने सिर्फ गे सेक्स को प्राथमिकता दी? ये तो सरासर अन्याये है पुरुषों और महिलाओ दोनों के प्रति। मेरे हिसाब से ये शोध और अन्वेषण का विषय है और महिलाये पुरुषों से कंधे से कंधा मिलकर इसमे भी बराबरी ज़रूर करेंगी।
मीडिया चाहे जो समझे पर मुझे सबसे ज्यादा खुशी इस बात की हुयी की 5 न्यायाधीशों की खंडपीठ मे 4 पुरुष न्यायाधीशों के अतिरिक्त एक महिला आदरणीय इंदु मल्होत्रा जी भी इस बेंच में शामिल हैं और यह एक गर्व का विषय है की 495 पृष्ठों का निर्णय लिखा भी एक महिला द्वारा ही लिखा गया है ।
मुझ मे न्यायतंत्र जितना ज्ञान और रुतबा तो नहीं पर पुरुषों की मीडिया से हुयी प्रतारणा से मेरे मन मे उपजे संवेग लिखना ज़रूर बनता और इसलिए भी ज़रूरी है कि कहीं दुखी हो मन बहलाने के लिए पुरुष कोई "अन्य" सहारा न ढूंढने लगें:
पुरुष बना अब आदत , बार बार तुझे सब ने घेरा
घाघरा अगर पहन लेता तो न होता इतना अंधेरा !